aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
علم عروض کے ماہرین میں رباعی کے بارے میں یہ خیال عام ہے یہ عربی شاعری کی پیدوار ہے، لیکن جدید تحقیقات اس بات کی جانب اشارہ کرتی ہیں کہ یہ خالص ایرانی صنف سخن ہے۔ فارسی میں رباعی گوئی کا یہ عالم ہے کہ کئی شعرا نے صرف رباعیات کی بدولت لازوال شہرت حاصل کی۔ لیکن اردو ادب میں اس کی مشکل اور ایک مخصوص بحر کی بنا پر وہ ترویج نہ مل سکی جو فارسی میں ہے۔ بنا بریں اردو مولانا حالی، اکبر الٰہ آبادی اور فراق ہی وہ شعرا ہیں جو اس حوالے سے جانے جاتے ہیں لیکن زیر نظر شاعر محروم کی رباعیاں بھی نہایت عمدہ ہیں۔ محروم ایک کہنہ مشق استاد شاعر کی حیثیت سے جانے جاتے ہیں۔ ان کی رباعیات میں فلسفہٴ اخلاق، مذہب اور روحانیت جیسے موضوعات پر بلند پایہ کلام ملتا ہے۔رباعی میں دلچسپی رکھنے والے قارئین کو محروم کی رباعیاں ضرور پڑھنا چاہیے۔
प्रसिद्ध शायर तिलोकचंद महरूम 1 जुलाई 1887 को ज़िला मियांवाली(पंजाब,पाकिस्तान)में पैदा हुए.बी.ए. तक शिक्षा प्राप्त की और फिर विभिन्न स्थानों पर शिक्षा-दीक्षा की सेवाएँ देते रहे.विभाजन के समय भड़क उठनेवाले फसादात के कारण देहली से हीज्रत कर गये.
महरूम के शायरी की भावना बहुत स्वाभाविक थी .वह बहुत छोटी सी उम्र ही से शेर कहने लगे थे. 1901 में जब मिडिल स्कूल के छात्र थे तो मल्का विक्टोरिया का मर्सिया लिखा. हाईस्कूल के विद्यार्थी जीवन के दौरान रिसाला ‘ज़माना’ और ‘ मख्ज़ंन ‘ में उनकी नज़्में शाया होने लगी थीं. तिलोक ने सारी विधाओं में रचना की.उनकी नज़्मों में राष्ट्रीय भावना बड़ी शिद्दत के साथ मौजूद है,इस हवाले से वह चकबस्त और सुरूर जहानाबदी के अमानतदार माने जाते हें. महरूम ने बच्चों के लिए भी लिखा ,बच्चों के लिए लिखीं गयी उनकी नज़्में बच्चों में राष्ट्र भावना को उभारने और उन्हें आदर्श मूल्यों से परिचय कराने के लिए प्रभावी हैं.
गंजे मा’नी ,रुबाईयात,कारवाने वतन,नैरंगे मा’नी, बच्चों की दुनिया,बहारे तिफ़ली,उनके काव्य संग्रह हैं. 6 जनवरी 1966 में दिल्ली में देहांत हुआ.