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रद करें डाउनलोड शेर

लेखक : चकबस्त ब्रिज नारायण

संपादक : उमा चकबस्त

संस्करण संख्या : 004

प्रकाशक : उमा चकबस्त चाइना बाज़ार, लखनऊ

प्रकाशन वर्ष : 1985

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शाइरी, महिलाओं की रचनाएँ

उप श्रेणियां : संकलन, संकलन

पृष्ठ : 241

सहयोगी : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द), देहली

सुब्ह-ए-वतन
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पुस्तक: परिचय

حب وطن سے معمور نظموں کے خالق پنڈت برج نارئن چکبست ،اردو شاعری میں بحیثیت نظم گو شاعر معروف ہیں۔انھوں نے شعر گوئی کا آغازنہ نظم نگاری سے کیا اور نہ ہی کسی کو باقاعدہ استاد بنایا۔چکبست کو دور ،وہ دور تھا جب ہم وطن کی جدوجہد آزادی میں زور شور سے حصہ لے رہے تھے۔چکبست بھی اپنے ملک کی آزادی کے متمنی تھے ۔ان کی بیشتر نظمیں جدوجہد آزادی کی مظہر ہیں اور آزادی ء ہند کی حمایت کرتی نظر آتی ہیں۔ان کی نظمیں نوجوانوں کے احساسات و جذبات کی عکاس ہیں۔"صبح وطن" چکبست کا شعری مجموعہ ہے۔جو ایک ایسا عظیم کارنامہ ہے ،جس میں شاعر کا جذبہ ءحب الوطنی عیاں ہے۔مجموعہ میں شامل ان کی نظمیں حب الوطنی ،قومی یکجہتی،جدوجہد آزادی ،مناظر فطرت اور ہندوستانی تہذیب وثقافت کی عکاس ہیں تو غزلیں ان کے منفرد لب ولہجہ کی تصویرپیش کررہی ہیں۔ مجموعہ میں چکبست کے حالات کے علاوہ چارحصوں کے تحت نظمیں ہیں۔ جبکہ ایک حصہ کے تحت غزلیں ہیں۔ اس کے علاوہ کچھ رباعیات اور ایک ظریفانہ نظم بھی شامل ہے۔

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लेखक: परिचय

पंडित उदित नारायण शिव पूरी चकबस्त के बेटे पंडित ब्रिज नारायण चकबस्त, चकबस्त के नाम से जाने गए। वो 1882 में फैजाबाद में पैदा हुए। पिता भी शायर थे और यक़ीन के उपनाम से लिखते थे । वो पटना में डिप्टी कमिश्नर थे । काली दास गुप्ता रज़ा को यक़ीन के बाईस शेर मिले जो कुल्लियात-ए-चकबस्त में दर्ज हैं। इस से अधिक कलाम नहीं मिलता। एक शे'र अफ़ज़ाल अहमद को भी मिला था।गुप्ता रज़ा के अनुसार वह एक निपुण शायर थे। उन्हीं का एक शे'र है निगाह-ए-लुत्फ़ से ए जां अगर नज़र करते,तुम्हारे तीरों से अपने सीना को हम सपर करते ।यक़ीन तरुण नाथ बख्शी दरिया लखनवी से परामर्श करते थे। चकबस्त जब पांच साल के थे पिता की मृत्यु (1887) हो गई।  बड़े भाई पंडित महाराज नारायण चकबस्त ने उनकी शिक्षा में रुचि ली। चकबस्त ने 1908 में कानून की डिग्री ली और वकालत शुरू की। राजनीति में भी रुचि लेते रहे और गिरफ्तारी भी हुए। कहते हैं 9 साल की उम्र से शे'र कहने लगे थे। बारह साल की उम्र में कलाम में परिपक्वता आ चुकी थी। मसनवी गुलजार-ए-नसीम पर उनका का वाद विवाद यादगार है। चकबस्त ने पहली नज़्म एक बैठक में 1894 में पढ़ी। कहीं कहीं चकबस्त के एक नाटक कमला का उल्लेख भी मिलता है। रामायण के कई सीन नज़्म किए, लेकिन उसे पूरा न कर सके ।12 फ़रवरी 1926 को एक मुकदमा से लौटते हुए स्टेशन पर उनका देहांत हो गया ।

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