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लेखक : ख़ालिद महमूद

प्रकाशक : मकतबा जामिया लिमिटेड, नई दिल्ली

प्रकाशन वर्ष : 2011

भाषा : Urdu

श्रेणियाँ : शोध एवं समीक्षा

उप श्रेणियां : सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत

पृष्ठ : 332

ISBN संख्यांक / ISSN संख्यांक : 978-81-7587-630-9

सहयोगी : ख़ालिद महमूद

उर्दू सफ़रनामों का तंक़ीदी मुताला
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पुस्तक: परिचय

زیر تبصرہ کتاب اردو سفرناموں کا تنقیدی مطالعہ پروفیسر خالد محمود کی تصنیف ہے، جس میں سفر کی تعریف اور اہمیت بیان کی گئی ہے، سفر کی قسموں کا تعارف کرایا کیا گیا ہے، مثلاً مذہبی سفر، ادبی سفر، تعلیمی اور علمی سفر کاروباری اور تجارتی سفر وغیرہ ، سفر اور سیاحت کا فرق واضح کیا گیا، سفر نامے کے فن اور آغاز و ارتقاء پر روشنی ڈالی گئی ہے، سفرنامے کی قسموں کی توضیح کی گئی ہے، سفرنامے کے اسالیب پر وقیع گفتگو کی گئی ہے، قدیم وجدید سفرناموں کے فرق اور مقاصد کو مدلل انداز میں بیان کیا گیا ہے، اردو سفرنامے کے مختلف ادوار سے متعارف کرایا گیا ہے، جس میں انیسویں صدی اور بیسویں صدی کا دور شامل ہے۔ مختلف سفرناموں کا تنقیدی مطالعہ کیا گیا ہے، جس میں عجائبات فرنگ ، سیاحت نامہ، تاریخ افغانستان، سفر فرنگ، سفرنامہ لندن، مسافران لندن وغیرہ سفرنامے شامل ہیں، عہد حاضر میں سفر نامہ کی صورت حال کو بھی واضح کی اگیا ہے، اور اس کی سمت و رفتار کا تعیین کیا گیا ہے، کتاب سفرنامے کی تاریخ و تنقید سے متعلق اہم معلومات پیش کرتی ہے۔

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लेखक: परिचय

प्रोफ़ेसर ख़ालिद महमूद 15 जनवरी1948 को सिरोंज ज़िला विदीशा मध्य प्रदेश में पैदा हुए। आपके वालिद का नाम अहमद शाह ख़ां और वालिदा का नाम सुलतान जहां बेगम था। आपकी शिक्षा मदरसा रियाज़ उल-मदारिस सिरोंज में हुई। हायर सेकेंड्री का इम्तिहान पास करने के बाद आप भोपाल आगए जहां हमीदिया गर्वनमेंट कॉलेज से बी.ए और सैफ़िया कॉलेज से बी.एड और एम.ए (उर्दू) की परीक्षाएं पास कीं।1976ई. में जामिया मिल्लिया इस्लामिया,नई दिल्ली के हायर सेकेंडरी स्कूल में पी.जी.टी (उर्दू) के रूप में आपकी पहली नियुक्ति हुई। 1989ई. में “उर्दू सफ़रनामों का तहक़ीक़ी-ओ-तन्क़ीदी मुताला” के विषय पर प्रोफ़ेसर मुज़फ़्फ़र हनफ़ी की निगरानी में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के उर्दू विभाग से पी.एचडी की उपाधि प्राप्त की और1991ई.  में अस्सिटेंट प्रोफ़ेसर के रूप में इसी विभाग से सम्बद्ध हो गए।1998ई. में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हुए और सन् 2006 में प्रोफ़ेसर बन गए। 2010 से 2013 तक उर्दू विभाग के विभागाध्यक्ष के पद पर आसीन रहे। सन् 2013 आपकी नौकरी का आख़िरी साल था मगर आपके उच्च प्रदर्शन के आधार पर आपको तीन साल का विस्तार दिया गया था और चालीस वर्षों की सेवाओं के बाद सन् 2016 में सेवानिवृत हुए। जामिया में आपकी नौकरी का पूरा अह्द शानदार रहा। आपके विभागाध्यक्ष के दिनों में कई यादगार काम हुए। “अरमुग़ान” के नाम से उर्दू विभाग की पहली साहित्यिक पत्रिका प्रकाशित हुई। पत्रिका के वार्षिक प्रकाशन की अनुमति मिली और बजट मंज़ूर हुआ। रबीन्द्र नाथ टैगोर की किताबों के उर्दू अनुवाद के लिए भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से एक बड़ा प्रोजेक्ट मिला जिसके अधीन छियानवे लाख रुपये की बड़ी राशि हुई। इस अनुदान से टैगोर की 13किताबें उर्दू में अनूदित हुईं। उन्हें प्रकाशित किया गया और टैगोर पर कई सेमिनार और वर्कशॉप आयोजित किए गए। टैगोर के बाद दूसरे विषयों पर भी सेमिनार हुए। उनमें पढ़े गए आलेख पुस्तक के रूप में प्रकाशित किए गए, जिनमें “उर्दू सहाफ़त: माज़ी और हाल।” “इब्न सफ़ी: शख़्सियत और फ़न”,  “ख़ुतबात-ए-शोबा-ए-उर्दू” और रबीन्द्र नाथ टैगोर: फ़िक्र-ओ-फ़न” जैसी अहम किताबें शामिल हैं।

प्रोफ़ेसर ख़ालिद महमूद मशहूर प्रकाशन संस्था मकतबा जामिया लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर भी रह चुके हैं। अपनी इस हैसियत में आपने मकतबा की चार-सौ आउट आफ़ प्रिंट क़ीमती किताबें जिनकी संख्या प्रति किताब ग्यारह सौ के हिसाब से जिनकी कुल प्रकाशन संख्या चार लाख चालीस हज़ार होती है, क़ौमी कौंसल बराए फ़रोग़ उर्दू ज़बान के सहयोग से मकतबा का एक पाई भी ख़र्च किए बिना री प्रिंट कराने में कामयाबी हासिल की जो आपका एक बड़ा कारनामा है। इसी के साथ मकतबा के मर्कज़ी दफ़्तर के लिए जामिया से दोमंज़िला इमारत भी हासिल करली। ये इमारत जामिया के मुख्य मार्ग पर स्थित है। इस दौरान आप उर्दू मासिक “किताब नुमा” और बच्चों का मासिक “पयाम-ए-तालीम” के प्रधान संपादक भी रहे।

सन् 2014 में आप दिल्ली उर्दू अकेडमी के वाइस चेयरमैन मनोनीत हुए, वहां भी आपने बड़े बड़े सेमिनारों, यादगारी और तौसीई ख़ुत्बों तथा विभिन्न साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का सिलसिला जारी रखा। बहुत सी नई किताबों का प्रकाशन भी हुआ जिनमें महत्वपूर्ण अदीबों और शायरों के मोनोग्राफ़ शामिल हैं।

प्रोफ़ेसर ख़ालिद महमूद मूल रूप से एक लोकप्रिय उस्ताद, ख़ुश फ़िक्र शायर, ज़हीन हास्य-व्यंगकार, अनुवादक, आलोचक और गद्यकार हैं। आपकी किताबें “उर्दू सफ़रनामों का तन्क़ीदी मुताला”, “अदब की ताबीर”, “नुक़ूश-ए-मअनी”, “तहरीर के रंग”, “अदब और सहाफ़ती अदब”, “तफ़हीम-ओ-ताबीर” और “शाह मुबारक आबरू” (मोनो ग्राफ़) अदबी हलक़ों में क़दर की निगाह से देखी जाती हैं। आपके काव्य संग्रह “समुंदर आश्ना”, “शे’र-ए-चराग़” और “शे’र-ए-ज़मीन” भी अहल-ए-नज़र से दाद-ओ-तहसीन हासिल कर चुके हैं। आपके निबंधों और रेखाचित्रों पर आधारित किताब “शगुफ़्तगी दिल की” शगुफ़्ता दिलों में बहुत लोकप्रिय है। आपने क़ौमी कौंसल बराए फ़रोग़ उर्दू ज़बान की दरख़ास्त पर मशहूर तंज़-ओ-मज़ाह निगार मुल्ला रमूज़ी का समग्र अपने लम्बी भूमिका के साथ छः खंडों में संपादित किया है। दिल्ली उर्दू अकेडमी की ओर से भी आपने उर्दू में तंज़-ओ-मज़ाह की रिवायत पर तीन दिवसीय अखिल भारतीय संगोष्ठी आयोजित की और उसके आलेखों को पुस्तक के रूप संपादित किया है। ये किताब बहुत पसंद की गई। आपने पाठ्य पुस्तकों के संपादन में भी विशेष सेवाएं दी हैं। इनके अलावा और भी कई किताबें हैं जिन्हें आपने सहयोग से संपादित किया है। 

मुल्क के अनगिनत शैक्षिक और साहित्यिक संस्थाओं ने आपकी सेवाओं के एतराफ़ में पुरस्कार और सम्मान से नवाज़ा है। साहित्य अकादेमी ने अनुवाद पुरस्कार, ग़ालिब इंस्टीटियूट ने ग़ालिब एवार्ड बराए उर्दू नस्र, दिल्ली उर्दू अकेडमी ने शायरी, मध्य प्रदेश उर्दू अकेडमी ने कुल हिंद मीर तक़ी मीर ऐवार्ड और दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने फ़रोग़ उर्दू ऐवार्ड से सरफ़राज़ किया है। आपकी शख़्सियत औरअदबी ख़िदमात पर बहुत से आलेख और किताबें भी लिखी जा चुकी हैं।1998 में डाक्टर सैफी सिरौंजी ने अपनी पत्रिका “इंतिसाब” का एक वृहत विशेषांक प्रकाशित किया। 2009 में “ख़ालिद महमूद: शख़्सियत और फ़न” शीर्षक से एक किताब संपादित करके प्रकाशित की। सन् 2010 में “ख़ालिद महमूद बहैसीयत इन्शाईया निगार” एक और किताब छापी। सन् 2015 में बरकत उल्लाह यूनीवर्सिटी भोपाल ने मुहम्मद अय्याज़ ख़ान को “डाक्टर ख़ालिद महमूद: फ़न और शख़्सियत” पर पी.एचडी की डिग्री प्रदान की।

आपने दुनिया के कई देशों विशेषतः कनाडा, अमरीका, लंदन, पेरिस, नीदरलैंड, स्विटज़रलैंड, जर्मनी, बेल्जियम,आस्ट्रेलिया, इटली(रोम) वेटिकन सिटी, दुबई, शारजा, अबूधाबी, सऊदी अरब, मारीशस और पाकिस्तान के साहित्यिक और पर्यटन यात्राएं की हैं और कुछ देशों के सेमिनारों और अदबी महफ़िलों में शिरकत की है जो आपके अनुभवों का उज्जवल अध्याय है।

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