ब-हर-तरीक़ उसे मिस्मार करते रहना है
ब-हर-तरीक़ उसे मिस्मार करते रहना है
कभी सुख़न तो कभी वार करते रहना है
दरों के वास्ते दीवार चाहिए जानाँ
सो फ़र्श-ए-ख़्वाब को दीवार करते रहना है
सहर के मार्का-ए-नेक-ओ-बद से क्या मतलब
हमारा काम तो बेदार करते रहना है
वो एक दर्द जो सैक़ल नहीं हुआ अब तक
उसी को आइना-ए-यार करते रहना है
यही है विरसा-ए-शब्बीर का चलन 'अरशद'
कि हर यज़ीद से इंकार करते रहना है
- पुस्तक : Sadaa-e-aabju (पृष्ठ 75)
- रचनाकार : Arshad Abdul Hameed
- प्रकाशन : Arshad Abdul Hameed (2004)
- संस्करण : 2004
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