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बा-होश वही हैं दीवाने उल्फ़त में जो ऐसा करते हैं

फ़ना बुलंदशहरी

बा-होश वही हैं दीवाने उल्फ़त में जो ऐसा करते हैं

फ़ना बुलंदशहरी

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    बा-होश वही हैं दीवाने उल्फ़त में जो ऐसा करते हैं

    हर वक़्त उन्ही के जल्वों से ईमान का सौदा करते हैं

    हम अहल-ए-जुनूँ में बस यही मेराज-ए-इबादत है अपनी

    मिलता है जब उन का नक़्श-ए-क़दम हम शुक्र का सज्दा करते हैं

    मिलते हैं नज़र होश उड़ते हैं मस्ती भी बरसने लगती है

    मा'लूम नहीं वो कौन सी मय आँखों से पिलाया करते हैं

    पाते हैं वही मक़्सूद-ए-नज़र मिलती है उन्हें मंज़िल उन की

    जो उन की तमन्ना में हर दम ख़ुद अपनी तमन्ना करते हैं

    है शौक़ यही मस्तानों को है शर्म यही दीवानों को

    सीने से लगा कर याद उस की उस शोख़ की पूजा करते हैं

    मायूस हो नादान बन दिल सोज़-ए-अलम से जलने दे

    जो चाहने वाले हैं उन के वो आग से खेला करते हैं

    हम किस के हुए दिल किस ने लिया वो कौन है क्या है क्या कहिए

    ये राज़ अभी तक खुल सका हम किस की तमन्ना करते हैं

    मयख़ान-ए-हस्ती में हम ने ये रंग नया देखा साक़ी

    जिन बादा-कशों को होश नहीं वो होश का दा'वा करते हैं

    ये कैसी जफ़ाएँ होती हैं ये कैसी अदा है उन की 'फ़ना'

    हम हुस्न का पर्दा रखते हैं वो इश्क़ का दा'वा करते हैं

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