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बेकार ये ग़ुस्सा है क्यूँ उस की तरफ़ देखो

मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी

बेकार ये ग़ुस्सा है क्यूँ उस की तरफ़ देखो

मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी

MORE BYमिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी

    बेकार ये ग़ुस्सा है क्यूँ उस की तरफ़ देखो

    आईने की हस्ती क्या तुम अपनी तरफ़ देखो

    महदूद है नज़्ज़ारा जब हैं यही दो-आलम

    या अपनी तरफ़ देखो या मेरी तरफ़ देखो

    मिलने से निगाहों के क्या फ़ाएदा होता है

    ये बात मैं समझा दूँ तुम मेरी तरफ़ देखो

    मुँह फेर लिया सब ने बीमार को जब देखा

    देखा नहीं जाता वो तुम जिस की तरफ़ देखो

    मंज़ूर 'अज़ीज़' उस का इरफ़ान जो है तुम को

    देखो किसी जानिब अपनी ही तरफ़ देखो

    स्रोत :
    • Gulkadah(Majmua-e-Ghazliyat)

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