चाहे सहरा में चाहे घर रहना
चाहे सहरा में चाहे घर रहना
ज़िंदगी से क़रीब-तर रहना
जिस के घर जाना मेहमाँ बन कर
उस के घर यार मुख़्तसर रहना
चाहते हो अगर मिले शोहरत
रोज़ की ताज़ा इक ख़बर रहना
ये मुनाफ़ी है आदमियत के
बे-ख़बर और ख़ुद-निगर रहना
आँच आने न पाए 'इज़्ज़त पर
तुम गुहर हो सदा गुहर रहना
कारनामों से अपने ऐ हमदम
तुम अमर हो तो फिर अमर रहना
ये गुज़ारिश है तुम से ऐ 'इबरत'
'उम्र-भर मेरे हम-सफ़र रहना
- पुस्तक : Magz-e-Sukhan (पृष्ठ 91)
- रचनाकार : Ibrat Bahraichi
- प्रकाशन : Dr. Ibrat Bahraichi (2017)
- संस्करण : 2017
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