दब गईं मौजें यकायक जोश में आने के बा'द
दब गईं मौजें यकायक जोश में आने के बा'द
मिट गई तूफ़ाँ की हस्ती मुझ से टकराने के बा'द
सख़्तियाँ मेरे लिए आसानियाँ बनती गईं
शहसवार-ए-कर्बला की याद आ जाने के बा'द
देख ली चश्म-ए-जहाँ ने क़ुव्वत-ए-मज़लूमियत
ढहा गए ख़ुद ज़ालिमों के घर सितम ढाने के बा'द
सई-ए-हक़ में मेरे माथे का पसीना देख कर
पानी पानी हो गईं मौजें भी लहराने के बा'द
थी मिरे आने से पहले हर तरफ़ छाई ख़िज़ाँ
सहन-ए-गुलशन में बहार आई मिरे आने के बा'द
दास्तान-ए-ग़ैर में कोई हक़ीक़त थी अगर
गर्द हो कर उड़ गई क्यूँ मेरे अफ़्साने के बा'द
छोड़ कर तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ महव-ए-रजज़-ख़्वानी हुए
नग़्मा-संजान-ए-चमन मेरी ग़ज़ल गाने के बा'द
तेरा शो'ला फूँक सकता है उसे माना मगर
सोच ले ऐ शम्अ अपना हश्र परवाने के बा'द
मुझ को आती है हँसी नासेह तिरी इस बात पर
तू समझता है कि मैं समझूँगा समझाने के बा'द
ख़ाक उड़ाई यूँ बगूलों ने कि पर्दा पड़ गया
कौन जाने क्या हुआ सहरा में दीवाने के बा'द
आशियाना जल गया ज़ुल्म-ओ-जफ़ा-ओ-जौर का
मेरी आह-ए-आतिशीं के 'बर्क़' बन जाने के बा'द
- पुस्तक : Tanveer-e-sukhan (पृष्ठ 95)
- रचनाकार : Rahmat ilahi barq Azmi
- प्रकाशन : Dr. Ahmed Ali Barqi Azmi, Zakir Nagar, New Delhi-25 (2003)
- संस्करण : 2003
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