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दिल की आग जवानी के रुख़्सारों को दहकाए है

अली सरदार जाफ़री

दिल की आग जवानी के रुख़्सारों को दहकाए है

अली सरदार जाफ़री

MORE BYअली सरदार जाफ़री

    दिल की आग जवानी के रुख़्सारों को दहकाए है

    बहे पसीना मुखड़े पर या सूरज पिघला जाए है

    मन इक नन्हा सा बालक है हुमक हुमक रह जाए है

    दूर से मुख का चाँद दिखा कर कौन उसे ललचाए है

    मय है तेरी आँखों में और मुझ पे नशा सा तारी है

    नींद है तेरी पलकों में और ख़्वाब मुझे दिखलाए है

    तेरे क़ामत की लर्ज़िश से मौज-ए-मय में लर्ज़िश है

    तेरी निगह की मस्ती ही पैमानों को छलकाए है

    तेरा दर्द सलामत है तो मरने की उम्मीद नहीं

    लाख दुखी हो ये दुनिया रहने की जगह बन जाए है

    स्रोत :
    • पुस्तक : Kulliyat-e-Ali Sardar Jafri Vol.II (पृष्ठ 157)
    • रचनाकार : Ali Ahmad Fatmi
    • प्रकाशन : Qaumi Council Baray-e-farog Urdu Zaban, New Delhi (2005)
    • संस्करण : 2005

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