दिल-रुबा है मिरा बड़ा गुस्ताख़
दिल-रुबा है मिरा बड़ा गुस्ताख़
मैं ने इतना न समझा था गुस्ताख़
अब तो वो शोख़ियाँ लगा करने
यक-ब-यक ऐसा हो गया गुस्ताख़
नाज़ बेजा कभी न करता था
क्या रक़ीबों ने कर दिया गुस्ताख़
जाँ-फ़िशानी हम उस पे करते हैं
राम हरगिज़ न वो हुआ गुस्ताख़
ऐ 'ज़िया' कीजियो समझ के कलाम
वो सनम तो है बेवफ़ा गुस्ताख़
- पुस्तक : Noquush (पृष्ठ B-410. E420)
- प्रकाशन : Nuqoosh Press Lahore (May June 1954)
- संस्करण : May June 1954
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