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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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दिन अगर चढ़ता उधर से मैं इधर से जागता

मुनीर नियाज़ी

दिन अगर चढ़ता उधर से मैं इधर से जागता

मुनीर नियाज़ी

MORE BYमुनीर नियाज़ी

    दिन अगर चढ़ता उधर से मैं इधर से जागता

    हुस्न सारा मुश्रिकों का साथ मेरे जागता

    मैं अगर मिलता उस से इस अज़ल की शाम में

    ख़्वाब इन दीवार-ओ-दर का दिल में कैसे जागता

    है मिसाल-ए-बाद-ए-गुलशन जागना उस शोख़ का

    रंग जैसे दूर का रंगों के पीछे जागता

    अब वो घर बाक़ी नहीं पर काश उस ता'मीर से

    एक शहर-ए-आरज़ू आँखों के आगे जागता

    चाँद चढ़ता देखना बेहद समुंदर पर 'मुनीर'

    देखना फिर बहर को उस की कशिश से जागता

    स्रोत :
    • पुस्तक : chhe rangi darwaze (पृष्ठ 49)

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