हर एक हाल में चलने से जिस को काम रहा
हर एक हाल में चलने से जिस को काम रहा
वो शख़्स क़ाइद-ए-यारान-ए-तेज़-गाम रहा
सफ़र अलामत-ए-हस्ती सफ़र दलील-ए-हयात
ख़ुशा वो लोग सफ़र जिन का ना-तमाम रहा
हयात-ए-गुल का हयात-ए-चमन है पैमाना
अमर है फूल चमन को अगर दवाम रहा
बयाज़-ए-मेहर निगल कर भी रात रात रही
सियाहकार का चेहरा सियाह-फ़ाम रहा
हयात-ओ-मौत के संगम पे जी रहे हैं हम
हमारा जश्न-ए-तरब भी ग़म-इल्तिज़ाम रहा
ज़माना ख़ुद को मुख़ातब समझ न ले मेरा
मैं अपने आप से दर-अस्ल हम-कलाम रहा
अजीब 'जाफ़र'-ए-फ़र्ख़न्दा-जाँ का मशरब है
कि रिंद हो के भी ख़ुश-बख़्त नेक-नाम रहा
- पुस्तक : Aqleem (पृष्ठ 56)
- रचनाकार : Jafar Baloch
- प्रकाशन : Maktaba aalia, Urdu Bazar Lahore (1986)
- संस्करण : 1986
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