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हिसार-ए-ज़ात से बाहर न अपने घर में हैं

रफ़ीक़ ख़याल

हिसार-ए-ज़ात से बाहर न अपने घर में हैं

रफ़ीक़ ख़याल

MORE BYरफ़ीक़ ख़याल

    हिसार-ए-ज़ात से बाहर अपने घर में हैं

    हम इस ज़मीं की तरह मुस्तक़िल सफ़र में हैं

    भटक रहे हैं अँधेरे मुसाफ़िरों की तरह

    उजाले महव-ए-सुकूँ दामन-ए-सहर में हैं

    जिन्हें ख़बर ही नहीं शरह-ए-ज़िंदगी क्या है

    वो मुजरिमों की तरह क़ैद अपने घर में हैं

    तो ए'तिबार-ए-शब-ए-इंतिज़ार है जानाँ

    तिरे फ़िराक़ के मौसम मिरी नज़र में हैं

    जो बे-क़रार हैं उन को कहीं क़रार नहीं

    नसीब वाले सितारों की रहगुज़र में हैं

    'ख़याल' आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार है शायद

    जो सुस्त-गाम थे वो लोग भी सफ़र में हैं

    स्रोत :
    • पुस्तक : Tujhe ky Maloom (पृष्ठ 85)
    • रचनाकार : Rafique Khayaal
    • प्रकाशन : Alhamd Publications (2007)
    • संस्करण : 2007

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