हुसूल-ए-रिज़्क़ के अरमाँ निकालते गुज़री
हुसूल-ए-रिज़्क़ के अरमाँ निकालते गुज़री
हयात रेत से सिक्के ही ढालते गुज़री
मुसाफ़िरत की सऊबत में उम्र बीत गई
बची तो पाँव से काँटे निकालते गुज़री
हवा ने जश्न मनाए वो इंतिज़ार की रात
चराग़-ए-हुजरा-ए-फुर्क़त सँभालते गुज़री
वो तेज़ लहर तो हाथों से ले गई कश्ती
फिर उस के बा'द समुंदर खँगालते गुज़री
रसाई जिस की न थी बे-कराँ समुंदर तक
वो मौज-ए-नहर भी छींटे उछालते गुज़री
यही नहीं कि सितारे थे दस्तरस से बईद
ज़रा ज़रा से तमन्ना भी टालते गुज़री
तमाम उम्र 'तसव्वुर' रिदा-ए-बख़्त-ए-सियाह
मशक़्क़तों के लहू से उजालते गुज़री
- पुस्तक : Seepiyon Ki Qaid men
- रचनाकार : Yaqoob Tasawwur
- प्रकाशन : Yaqoob Tasawwur
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