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इस का नहीं है ग़म कोई, जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

इस का नहीं है ग़म कोई, जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

MORE BYहज़ीं लुधियानवी

    इस का नहीं है ग़म कोई, जाँ से अगर गुज़र गए

    दुख की अँधेरी रात में हम भी चराग़ धर गए

    शान-ओ-शिकोह क्या हुए, क़ैसर-ओ-जम किधर गए

    तख़्त उलट उलट गए, ताज बिखर बिखर गए

    फ़िक्र-ए-मआ'श ने सभी जज़्बों को सर्द कर दिया

    सड़कों पे दिन गुज़र गया हो के निढाल घर गए

    लिपटे रहे तमाम रात फूल की पत्तियों के साथ

    धूप पड़ी जो फूल पर क़तरे फ़रार कर गए

    तुंदी-ए-सैल-ए-वक़्त में ये भी है कोई ज़िंदगी

    सुब्ह हुई तो जी उठे, रात हुई तो मर गए

    गर्द-ए-सफ़र में खो गए, ऐसे हज़ारों राह-रौ

    राह में जो ठहर गए, आँधियों से जो डर गए

    फिर भी किसी रईस के दिल की तरह है चश्म तंग

    आप फिरे हैं मुल्क मुल्क आप नगर नगर गए

    खिल के रहेंगे देखना चार-सू रौशनी के फूल

    रात के दश्त की तरफ़ नक़्श-गर-ए-सहर गए

    ख़ाक में तेरी मिल गई 'फ़ैज़' के जिस्म की ज़िया

    अब तो दयार-ए-महवशाँ क़र्ज़ तमाम उतर गए

    स्रोत :
    • पुस्तक : Funoon (Monthly) (पृष्ठ 300)
    • रचनाकार : Ahmad Nadeem Qasmi
    • प्रकाशन : 4 Maklood Road, Lahore (Edition Nov. Dec. 1985,Issue No. 23)
    • संस्करण : Edition Nov. Dec. 1985,Issue No. 23

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