जब तेग़ को पकड़ वो खूँ-ख़्वार घर से निकला
जब तेग़ को पकड़ वो खूँ-ख़्वार घर से निकला
तब मैं भी जान से हो बेज़ार घर से निकला
हर मू-कमर के सौ सौ बल पड़ गए कमर में
पटका जो बाँध कर वो बल-दार घर से निकला
कुश्ते को तेरे दर से अफ़्सोस ले गए कल
और तू न इक क़दम भी ऐ यार घर से निकला
छोड़ा न जब गरेबाँ दस्त-ए-जुनूँ ने मेरा
तब चीर कर मैं उस को नाचार घर से निकला
रौज़न से उस ने ऊपर मुझ को खड़े जो देखा
खँखार कर वहीं वो अय्यार घर से निकला
उस बुत के देखने को कर तर्क दीन-ओ-ईमाँ
मैं डाल कर गले में ज़ुन्नार घर से निकला
चेहरों प आशिक़ों के ज़र्दी सी फिर गई तब
जब बाँध वो बसंती दस्तार घर से निकला
लोगों के ख़ौफ़ से फिर कल शब को मेरी ख़ातिर
लाचार फाँद कर वो दीवार घर से निकला
वो शाह-ए-हुस्न मेरे इस मुल्क-ए-दिल पे यारो
जिस दम कि दौड़ने को यलग़ार घर से निकला
खोल आह का अलम और ले अश्क के क़शों को
यूँ मैं भी हो के इस दम तय्यार घर से निकला
कुछ तो असर किया है दिल की तिरे कशिश ने
पढ़ता जो वो 'सुलैमान' अशआ'र घर से निकला
- पुस्तक : Ghazal Usne Chhedi(2) (पृष्ठ 92)
- रचनाकार : Farhat Ehsas
- प्रकाशन : Rekhta Books (2017)
- संस्करण : 2017
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