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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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जो वो बहार-ए-अज़ार-ए-ख़ूबी चमन में आता ख़िराम करता

मीर मोहम्मदी बेदार

जो वो बहार-ए-अज़ार-ए-ख़ूबी चमन में आता ख़िराम करता

मीर मोहम्मदी बेदार

MORE BYमीर मोहम्मदी बेदार

    जो वो बहार-ए-अज़ार-ए-ख़ूबी चमन में आता ख़िराम करता

    सनोबर-ओ-सर्व हर एक कर ज़रूर उस को सलाम करता

    फ़िगार तेग़-ए-सितम के अब तक करें हैं नाला ब-रंग-ए-बुलबुल

    क़यामत गुल अजब ही होती तू गर किसी से कलाम करता

    जो पाता लज़्ज़त बसान-ए-साक़ी मय-ए-मोहब्बत से तेरी ज़ाहिद

    निकल हरम से वो बुत-कदे में मक़ाम अपना मुदाम करता

    जो ऊपरी रू तुझे दिखाता जमाल अपना तो वोहीं नासेह!

    हमारे मानिंद छोड़ घर को गली में उस की क़याम करता

    ख़याल उस के से इतनी फ़ुर्सत कहाँ कि फ़िक्र-ए-सुख़न करूँ मैं

    वगर्ना 'बेदार' इस ग़ज़ल को क़सीदा में ला कलाम करता

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