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कुछ इस तरह से तसव्वुर में आ रहा है कोई

एहसान दानिश

कुछ इस तरह से तसव्वुर में आ रहा है कोई

एहसान दानिश

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    कुछ इस तरह से तसव्वुर में रहा है कोई

    चराग़ रूह में जैसे जला रहा है कोई

    कोई कलीम उठे वर्ना इंतिज़ार के बा'द

    चराग़-ए-तूर-ए-मोहब्बत बुझा रहा है कोई

    वो दैर का था कि का'बे का ये नहीं मा'लूम

    मिरी ख़ुदी का मुहाफ़िज़ ख़ुदा रहा है कोई

    जो रोकना हो तो बढ़ के रोक ले वर्ना

    तिरे हदूद-ए-तग़ाफ़ुल से जा रहा है कोई

    रवाँ-दवाँ नहीं बे-वज्ह कारवान-ए-हयात

    मुझे ज़रूर कहीं से बुला रहा है कोई

    बदल रहे हैं जुनून-ओ-ख़िरद के पैमाने

    किस एहतिमाम-ए-तग़य्युर से रहा है कोई

    कुछ मलाल-ए-असीरी ख़तरा-ए-सय्याद

    क़फ़स समझ के नशेमन बना रहा है कोई

    ज़मीन-ओ-चर्ख़ ने इंकार कर दिया जिस से

    वो बार दोश-ए-वफ़ा पर उठा रहा है कोई

    जहान-ए-नौ में ब-रंग-ए-कशाकश-ए-पैहम

    हयात-ए-नौ के सलीक़े सिखा रहा है कोई

    ख़बर करो ये हक़ाएक़ के पासबानों को

    मजाज़ खो के हक़ीक़त में रहा है कोई

    जाने कौन सी मंज़िल में इश्क़ है कि मुझे

    मिरे हुदूद से बाहर बुला रहा है कोई

    डरो ख़ुदा से बड़ा बोल बोलने वालो

    क़रीब हम से भी बे-इंतिहा रहा है कोई

    मुझे सितम में इज़ाफ़े का ग़म नहीं लेकिन

    यक़ीन कर कि मिरे बा'द रहा है कोई

    निगाह-ओ-लब में हँसी की सकत नहीं लेकिन

    ब-जब्र-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा मुस्कुरा रहा है कोई

    ये सुब्ह-ओ-शाम की यूरिश ये मौसमों की रविश

    कि जैसे मेरे तआ'क़ुब में रहा है कोई

    किसी को इस की ख़बर ही नहीं थी कुछ 'एहसान'

    कि मिट के अपना ज़माना बना रहा है कोई

    स्रोत :
    • पुस्तक : Ghazaliyat-e-ahsaan Danish (पृष्ठ 213)
    • रचनाकार : Shabnam Parveen
    • प्रकाशन : Asghar Publishers (2006)
    • संस्करण : 2006

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