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क्या ख़बर कह दिया क्या आप ने दीवाने से

मिर्ज़ा क़ादिर बख़्श साबिर देहलवी

क्या ख़बर कह दिया क्या आप ने दीवाने से

मिर्ज़ा क़ादिर बख़्श साबिर देहलवी

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    क्या ख़बर कह दिया क्या आप ने दीवाने से

    अब दिल-ए-वहशी बहलता नहीं बहलाने से

    जिस को कुछ रब्त है साक़ी तिरे मयख़ाने से

    उस को मतलब है शीशे से पैमाने से

    हम को था चैन मयस्सर उसी दीवाने से

    मिट गए हम भी दिल-ए-ज़ार के मिट जाने से

    ज़िंदगी मिलती है जिस शख़्स को मर जाने से

    वो समझ सकता है नासेह तिरे समझाने से

    किस क़दर रंज-ओ-मुसीबत का मुरक़्क़ा हूँ मैं

    काँप उठता है मिरा दिल तिरी याद आने से

    ये नसीहत तो बजा नासेह-ए-मुश्फ़िक़ लेकिन

    कोई दीवाना समझता भी है समझाने से

    सामने आओ हटा दो रुख़-ए-ज़ेबा से नक़ाब

    कोई पर्दा भी किया करता है दीवाने से

    हम ने ये कह के दिल-ए-ज़ार को समझाया है

    काम बनते हैं कहीं इश्क़ में घबराने से

    मेरी जमईयत-ए-ख़ातिर को परेशाँ करो

    ज़ुल्फ़-ए-बरहम को हटाओ अभी शाने से

    आप के ज़ुल्म को भी मैं ने करम समझा है

    शर्म आती है मुझे आप के शरमाने से

    क्या ख़बर इश्क़ में अंजाम मिरा क्या होगा

    अब यगाने भी नज़र आते हैं बेगाने से

    दिल दुखाने का तो अंजाम बुरा होता है

    ख़ुद तड़प जाएगा ज़ालिम मिरे तड़पाने से

    अल्लह अल्लाह ये बीमार-ए-मोहब्बत का इलाज

    रंग बदला तिरे दामन की हवा खाने से

    जाते जाते मिरी कैफ़िय्यत-ए-दिल देखता जा

    मुझ पे क्या गुज़रेगी दोस्त तिरे जाने से

    क्या करें जी के ये जीना भी कोई जीना है

    जब हयात-ए-अबदी मिलती है मर जाने से

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