लम्हा लम्हा दर्द टपकता रहता है
लम्हा लम्हा दर्द टपकता रहता है
जाने अंदर कौन सिसकता रहता है
इक आहट सी होती रहती है दिल में
इस सहरा में कौन भटकता रहता है
हिज्र-ज़दा इक 'आशिक़ महव-ए-ग़म अक्सर
माज़ी के औराक़ पलटता रहता है
फूल सी कोई याद है उस से वाबस्ता
मेरे दिल का ज़ख़्म महकता रहता है
दिल जैसे मेले में खोया इक बच्चा
हर आहट की ओर लपकता रहता है
सर पर इतनी धूप सफ़र है सहरा में
मेरा सारा जिस्म झुलसता रहता है
दिल में इतनी आग नहीं जो जल उट्ठे
बस यूँही चुप-चाप सुलगता रहता है
- पुस्तक : Khwab Patthar Ho Gaye (पृष्ठ 56)
- रचनाकार : Manish Shukla
- प्रकाशन : Skylark House of Publications, 52 Shiv Vihar, Sector-1, Jankipuram, Lucknow-21 (2012)
- संस्करण : 2012
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.