न बर्ग हूँ मैं गुल का न लाले का शजर हूँ
न बर्ग हूँ मैं गुल का न लाले का शजर हूँ
मैं लख़्त-ए-दिल-ए-रीश हूँ और दाग़-ए-जिगर हूँ
हूँ दैर में न काबे में न दिल ही में अपने
क्या जानों तजस्सुस में तिरी आह किधर हूँ
पैदा हुए और जाते रहे सैकड़ों मुझ से
आतिश-कदा-ए-दहर में इक मैं भी शरर हूँ
न ज़ीस्त का हज़ है न मुझे मौत का आराम
हूँ नज़्अ' में जैसे कि इधर हूँ न उधर हूँ
वाँ ध्यान कभी तुझ को गुज़रता नहीं मेरा
मैं हूँ कि तिरी याद में याँ आठ पहर हूँ
न दूद हूँ मुजमिर का न मैं शम्अ' का शोला
मैं नाला-ए-शब-गीर हूँ और आह-ए-सहर हूँ
ख़ाली नहीं मुझ से हरम-ओ-दैर-ओ-दिल-ओ-चश्म
मैं मज़हर-ए-हक़ हूँ कि जिधर देखो तिधर हूँ
पाता ही नहीं राह किसी दिल में इलाही
मैं किस दिल-ए-नाकाम की आहों का असर हूँ
न शीशा-ए-मय हूँ न 'हसन' साग़र-ए-लबरेज़
मैं इक दिल-ए-पुर-दर्द हूँ और दीदा-ए-तर हूँ
स्रोत:

Deewan-e-Meer Hasan (Pg. 73)
- लेखक: मीर हसन
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- संस्करण: 1912
- प्रकाशक: मुंशी नवल किशोर, लखनऊ
- प्रकाशन वर्ष: 1912
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