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नज़र हैरत-ज़दा सी है क़दम बहके हुए से हैं

महशर इनायती

नज़र हैरत-ज़दा सी है क़दम बहके हुए से हैं

महशर इनायती

MORE BYमहशर इनायती

    नज़र हैरत-ज़दा सी है क़दम बहके हुए से हैं

    शबाब आया है उन पर और हम बहके हुए से हैं

    अभी उन के करम की बात अपने हुस्न-ए-ज़न तक है

    मगर उम्मीद-वारान-ए-करम बहके हुए से हैं

    वफ़ा के सिलसिले में हो ही जाती है ग़लत-फ़हमी

    वो बहकाए गए से हैं हम बहके हुए से हैं

    बड़े ज़ी-होश बनते थे मय-ए-इशरत के मतवाले

    हुआ है जब से कुछ एहसास-ए-ग़म बहके हुए से हैं

    उन्हें आईना-रुख़ कहिए उन्हीं के सामने जा कर

    ये अंदाज़ा तो होता है कि हम बहके हुए से हैं

    कहा करते थे हम अक्सर कि राह-ए-ज़िंदगी है क्या

    जो अब देखे हैं उस के पेच-ओ-ख़म बहके हुए से हैं

    मिरी दुनिया है ये अहल-ए-जुनूँ क्या होश वाले क्या

    मिरी दुनिया में सब ही बेश-ओ-कम बहके हुए से हैं

    ख़ुदा रक्खे चले हैं मंज़िल-ए-जानाँ को सर करने

    वो देखो ना यहीं जिन के क़दम बहके हुए से हैं

    हर इक ने मुझ को दीवाना ही ठहराया है 'महशर'

    सभी क़िस्सा-निगारों के क़लम बहके हुए से हैं

    स्रोत :
    • पुस्तक : Sahbaa-o-Saman (पृष्ठ 78)
    • संस्करण : 1st 1979 IInd 2008

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