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निकहत-ओ-रंग न मौसम की हवा ठहरी है

बख़्तियार ज़िया

निकहत-ओ-रंग न मौसम की हवा ठहरी है

बख़्तियार ज़िया

MORE BYबख़्तियार ज़िया

    निकहत-ओ-रंग मौसम की हवा ठहरी है

    गुल की क़िस्मत में ब-हर-हाल फ़ना ठहरी है

    ज़ख़्म-ए-दिल खिल उठे हँसते हुए फूलों की तरह

    एक लम्हे को जहाँ बाद-ए-सबा ठहरी है

    मौत को कहिए इलाज-ए-ग़म-ए-हस्ती लेकिन

    ज़िंदगी कौन से जुर्मों की सज़ा ठहरी है

    और मंसूर कोई मशहद-ए-हस्ती में था

    लाएक़-ए-दार जो इक मेरी अना ठहरी है

    हुस्न-ए-मुख़्तार है हर बात रवा है इस को

    फ़ितरत-ए-इश्क़ तो पाबंद-ए-वफ़ा ठहरी है

    कोई नग़्मा कोई झंकार कोई होश-रुबा

    दिल ही बहला लें तबीअत जो ज़रा ठहरी है

    स्रोत :
    • पुस्तक : Shab Charagh (पृष्ठ 44)
    • रचनाकार : Bakhtiyar Ziya
    • प्रकाशन : Markaz-e-adab (1993)
    • संस्करण : 1993

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