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फेंकी किसी ने कंकरी दिल यक-ब-यक दरिया हुआ

सय्यद अमीन अशरफ़

फेंकी किसी ने कंकरी दिल यक-ब-यक दरिया हुआ

सय्यद अमीन अशरफ़

MORE BYसय्यद अमीन अशरफ़

    फेंकी किसी ने कंकरी दिल यक-ब-यक दरिया हुआ

    दरिया में इक सैलाब था सैलाब था उमडा हुआ

    दिल में कोई आज़ार था वो मुझ से यूँ गोया हुआ

    आज़ुर्दा-ए-तासीर हूँ दिल दे दिया अच्छा हुआ

    गाहे ब-रंग-ए-मेहरबाँ गाहे ख़याल-ए-बद-गुमाँ

    वो भी तो आख़िर फूल है काँटों में है उलझा हुआ

    इस तरह चश्म-ए-नीम-वा ग़ाफ़िल भी थी बेदार भी

    जैसे नशा हो रात का या सुब्ह का तड़का हुआ

    लुत्फ़-ए-नज़र वो शय लगी जो जिस क़दर थी अजनबी

    रस्ता था जाना हुआ चेहरा था देखा हुआ

    ख़ातिर-ए-मेहर-आश्ना उस के तलव्वुन पर जा

    ये बे-रुख़ी थी इक अदा वो सर्व था सीधा हुआ

    वो 'इल्म हो या शा'इरी वो फ़क़्र हो या सरवरी

    हम जिस क़दर झुकते गए क़द और भी ऊँचा हुआ

    जंग-ओ-जदल के वास्ते आख़िर बड़े क्यूँ गए

    बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल था झगड़ा कोई झगड़ा हुआ

    स्रोत :
    • पुस्तक : Bahar-e-ejaad (पृष्ठ 34)
    • रचनाकार : Sayed Ameen Ashraf
    • प्रकाशन : Sayed Ameen Ashraf (2007)
    • संस्करण : 2007

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