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शाख़ों पर जब पत्ते हिलने लगते हैं

सबा नुसरत

शाख़ों पर जब पत्ते हिलने लगते हैं

सबा नुसरत

MORE BYसबा नुसरत

    शाख़ों पर जब पत्ते हिलने लगते हैं

    आँसू मेरे दिल पे गिरने लगते हैं

    तुझ से दूरी और क़यामत लगती है

    आपस में दो वक़्त जो मिलने लगते हैं

    दिन तो जैसे-तैसे कट ही जाता है

    रात को उठ उठ तारे गिनने लगते हैं

    एक तबस्सुम देख के तेरे होंटों पर

    फूल ख़िज़ाँ की रुत में खिलने लगते हैं

    होता है शानों पे महसूस उस का हाथ

    मौसम जब भी रंग बदलने लगते हैं

    उस की जब हो जाए 'नुसरत' चश्म-ए-करम

    चाक गरेबानों के सिलने लगते हैं

    स्रोत :
    • पुस्तक : Urdu Gazal ka Magribi Daricha (पृष्ठ 108)
    • रचनाकार : Dr. Jawaz Jafri
    • प्रकाशन : Kitab Saray, Lahore (2011)
    • संस्करण : 2011

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