सुब्ह है पर्दा तिरे चेहरे से हट जाने का नाम
सुब्ह है पर्दा तिरे चेहरे से हट जाने का नाम
शाम है गेसू तिरे रुख़ पर बिखर जाने का नाम
जिस ने देखा इक नज़र सरशार-ओ-बे-ख़ुद हो गया
चश्म-ए-मयगूँ रख दिया लबरेज़ पैमाने का नाम
तेरे आने से बहार आई है बज़्म-ए-दहर में
और क़यामत है तिरे आ कर चले जाने का नाम
ज़िंदगी है अस्ल में मिलने की पैहम कश्मकश
मौत है उस मरकज़-ए-असली में मिल जाने का नाम
आदमी इस जिस्म के मिटने से मिट सकता नहीं
मौत आना है फ़क़त महफ़िल बदल जाने का नाम
मुतमइन इंसान इस दुनिया में हो सकता नहीं
मुतमइन होना है कुछ दिन को बहल जाने का नाम
एक तबस्सुम के इवज़ रोना पड़ा पहरों मुझे
अब तो लेती ही नहीं लब पर हँसी आने का नाम
एक जाम-ए-बे-ख़ुदी 'नजमा' को साक़ी बख़्श दे
ता-अबद रौशन रहेगा तेरे मयख़ाने का नाम
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