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उदास शाम में पज़मुर्दा बाद बन के न आ

फ़रहान सालिम

उदास शाम में पज़मुर्दा बाद बन के न आ

फ़रहान सालिम

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    उदास शाम में पज़मुर्दा बाद बन के

    जो सके तो ख़ुद अपनी याद बन के

    कभी सहर भी तो बन विसाल के मौसम

    सदा यूँ ही शब-ए-मर्ग-मुराद बन के

    तुझे तिरे मह अंजुम का वास्ता रात

    मिरे इन उजले दरों पर सवाद बन के

    किताब-ए-ज़ीस्त ख़ुदा-रा कोई ग़ज़ल भी सुना

    शिकस्त-ए-जाँ की फ़क़त रूएदाद बन के

    भली लगे तो इसे गुनगुना भी लब-ए-यार

    मिरी ग़ज़ल पे फ़क़त हर्फ़-ए-दाद बन के

    उतर ज़रूर मगर आह सुब्ह-ए-आज़ादी

    किसी ज़मीन पे वजह-ए-फ़साद बन के

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