वो जो ख़ुद अपने बदन को साएबाँ करता नहीं
वो जो ख़ुद अपने बदन को साएबाँ करता नहीं
क्यूँ न पछताए कि साया आसमाँ करता नहीं
जाने क्यूँ इक दूसरे के लोग हैं शिकवा-गुज़ार
कौन किस के हौसलों का इम्तिहाँ करता नहीं
कुछ नहीं खुलता कि आख़िर क्या कहानी है जिसे
लोग सुनना चाहते हैं मैं बयाँ करता नहीं
उस से मिलते वक़्त तुझ को साथ रख्खूँ किस तरह
मैं तो अपने-आप को भी दरमियाँ करता नहीं
मेरी पेशानी पे अपनी मोहर कर देती हैं सब्त
नस्ब जिन राहों पे में अपना निशाँ करता नहीं
मुझ में और हम-पेशगाँ में बस यही इक फ़र्क़ है
माँग है जिस माल की ज़ेब-ए-दुकाँ करता नहीं
सर्फ़ पतवारों के बल पर पार क्या उतरेगा वो
इन हवाओं में जो ऊँचा बादबाँ करता नहीं
हेच है सब की नज़र में देखना 'राशिद' वो शख़्स
अपने बारे में जो ख़ुद कोई गुमाँ करता नहीं
- पुस्तक : Monthly Usloob (पृष्ठ 389)
- रचनाकार : Mushfiq Khawaja
- प्रकाशन : Usloob 3D 9—26 Nazimabad karachi 180007 (Oct. õ Nov. 1983,Issue No. 5-6)
- संस्करण : Oct. õ Nov. 1983,Issue No. 5-6
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