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ज़मीं बदली फ़लक बदला मज़ाक़-ए-ज़िंदगी बदला

फ़िराक़ गोरखपुरी

ज़मीं बदली फ़लक बदला मज़ाक़-ए-ज़िंदगी बदला

फ़िराक़ गोरखपुरी

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    ज़मीं बदली फ़लक बदला मज़ाक़-ए-ज़िंदगी बदला

    तमद्दुन के क़दीम अक़दार बदले आदमी बदला

    ख़ुदा-ओ-अहरमन बदले वो ईमान-ए-दुई बदला

    हदूद-ए-ख़ैर-ओ-शर बदले मज़ाक़-ए-काफ़िरी बदला

    नए इंसान का जब दौर-ए-ख़ुद-ना-आगही बदला

    रुमूज़-ए-बे-ख़ुदी बदले तक़ाज़ा-ए-ख़ुदी बदला

    बदलते जा रहे हैं हम भी दुनिया को बदलने में

    नहीं बदली अभी दुनिया तो दुनिया को अभी बदला

    नई मंज़िल के मीर-ए-कारवाँ भी और होते हैं

    पुराने ख़िज़्र-ए-रह बदले वो तर्ज़-ए-रहबरी बदला

    कभी सोचा भी है नज़्म-ए-कोहना के ख़ुदा-वंदो

    तुम्हारा हश्र क्या होगा जो ये आलम कभी बदला

    उधर पिछले से अहल-ए-माल-ओ-ज़र पर रात भारी है

    इधर बेदारी-ए-जम्हूर का अंदाज़ भी बदला

    ज़हे सोज़-ए-ग़म-ए-आदम ख़ुशा साज़-ए-दिल-ए-आदम

    इसी इक शम्अ' की लौ ने जहान-ए-तीरगी बदला

    नए मंसूर हैं सदियों पुराने शेख़-ओ-क़ाज़ी हैं

    फ़तवे कुफ़्र के बदले उज़्र-ए-दार ही बदला

    बताए तो बताए उस को तेरी शोख़ी-ए-पिन्हाँ

    तिरी चश्म-ए-तवज्जोह है कि तर्ज़-ए-बे-रुख़ी बदला

    ब-फ़ैज़-ए-आदम-ए-ख़ाकी ज़मीं सोना उगलती है

    उसी ज़र्रे ने दौर-ए-मेहर-ओ-माह-ओ-मुशतरी बदला

    सितारे जागते हैं रात लट छटकाए सोती है

    दबे पाँव किसी ने के ख़्वाब-ए-ज़िंदगी बदला

    'फ़िराक़'-ए-हम-नवा-ए-'मीर'-ओ-'ग़ालिब' अब नए नग़्मे

    वो बज़्म-ए-ज़िंदगी बदली वो रंग-ए-शाइ'री बदला

    स्रोत :
    • पुस्तक : Gul-e-Naghma (पृष्ठ 19)
    • रचनाकार : Firaq Gorakhpuri
    • प्रकाशन : Idarah idarah ilm-o-adab, Delhi (2006)
    • संस्करण : 2006

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