ज़िंदगी ने फ़स्ल-ए-गुल को भी पशेमाँ कर दिया
ज़िंदगी ने फ़स्ल-ए-गुल को भी पशेमाँ कर दिया
जिस बयाबाँ पर नज़र डाली गुलिस्ताँ कर दिया
तू ने ये क्या ऐ सुकूत-ए-शिकवा-सामाँ कर दिया
दिल की दिल ही में रही उन को पशेमाँ कर दिया
शुक्रिया ऐ मौसम-ए-गुल पास-ए-वहशत है यही
गुल्सिताँ को तू ने हम-दीवार-ए-ज़िंदाँ कर दिया
कितने अफ़्साने बना कर रख लिए थे शौक़ ने
यूँ नक़ाब उल्टी हक़ीक़त ने कि हैराँ कर दिया
किस क़दर मज़बूत निकले तेरे दीवाने के हाथ
शाम-ए-ग़म को जब निचोड़ा सुब्ह-ए-ताबाँ कर दिया
फूल बरसाए हैं क्या क्या तेग़-ए-ख़ूँ-आशाम ने
तुम ने शहर-ए-गुल-अज़ाराँ को गुलिस्ताँ कर दिया
सीना-ए-सनअत में भर कर अपने दिल का इज़्तिराब
आहन-ओ-फ़ौलाद को मैं ने ग़ज़ल-ख़्वाँ कर दिया
- पुस्तक : Bhasha Sangam (Quterly Patna) (पृष्ठ 228)
- रचनाकार : B. Pradhan,Managing Editor Imteyaz Ahmad Karimi
- प्रकाशन : Urdu Directorate Flate No. 202, C Block, Afirs Hotle, Beli Road, Patna (July2014 to March 2015,Issue No.1,4,3,Vol. 21)
- संस्करण : July2014 to March 2015,Issue No.1,4,3,Vol. 21
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