इल्म-ए-अरूज़
उर्दू शायरी के छंद-विधान के सिद्धांत
इल्म-ए-अरूज़ का संबंध किसी शेर का वज़्न और उसका मौज़ूँ (लय-बद्ध) होना, न होना मालूम करने से है। अरूज़ (छंद-विधान) के तहत शेरों के कुछ ख़ास वज़्न तय किए गए हैं जिनमें से हर वज़्न को बह़र कहा जाता है। हर बह़र कुछ विशेष हिस्सों से मिलकर बनती है जिन्हें अरकान (एकवचन-रूक्न) कहा जाता है। शेर का वज़्न जानने के लिए इन्हीं अरकान का इस्तेमाल किया जाता है। वज़्न जानने के लिए किसी शेर को उसके अरकान में तोड़ कर देखने को 'तक़्तीअ' कहते है।
क्रम संख्या
विषय
अवधि
अध्याय 1
परिचय
04:12
अध्याय 2
आहंग की मिज़ान अरूज़ है
21:27
अध्याय 3
अरूज़ी अर्कान
35:25
अध्याय 4
बहर-ए-हज़ज
42:32
अध्याय 5
बहर-ए-रजज़
22:24
अध्याय 6
बहर-ए-रमल
43:56
अध्याय 7
बहर-ए-कामिल
11:38
अध्याय 8
बहर-ए-वाफ़िर
11:03
अध्याय 9
बहर-ए-मुतक़ारिब
31:21
अध्याय 10
बहर-ए-मुतदारिक
26:48
अध्याय 11
बहर-ए-मुज़ारे
38:30
अध्याय 12
बहर-ए-मुज्तस
21:09
अध्याय 13
बहर-ए-मुंसरह
14:40
अध्याय 14
बहर-ए-मुक़्तज़िब
12:43
अध्याय 15
बहर-ए-सरीअ
20:48
अध्याय 16
बहर-ए-ख़फ़ीफ़
17:23
अध्याय 17
बहर-ए-क़रीब
17:03
अध्याय 18
बहर-ए-जदीद
04:51
अध्याय 19
बहर-ए-मुशाकिल
06:59
अध्याय 20
बहर-ए-तवील
19:40
अध्याय 21
बहर-ए-मदीद
09:36
अध्याय 22
बहर-ए-बसीत
07:09
अध्याय 23
क़ाफ़िया और रदीफ़
31:16
अध्याय 24
तक़तीअ
39:42
अध्याय 25
शेर गोई
28:50