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बचपने की याद

MORE BYमिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी

    बचपने की दुनिया तो याद रही है

    दिल से मिरी सदा-ए-फ़रियाद रही है

    राहत सुना रही थी अफ़्साना सल्तनत का

    थी माँ की गोद मुझ को काशाना सल्तनत का

    वो घर कि दूर जिस से थी गर्दिश-ए-ज़माना

    आज़ादियों का मेरी आबाद आशियाना

    फिरती है अब नज़र में तस्वीर उस मकाँ की

    अर्श-ए-बरीं से बेहतर थी सरज़मीं जहाँ की

    नाज़ुक-मिज़ाज बन कर वो रूठना मचलना

    सेहन-ए-मकाँ में दिन भर वो कूदना-उछलना

    अल्लाह-रे वो तख़य्युल अल्लाह-रे साज़-ओ-सामाँ

    दुनिया की सल्तनत थी इस ज़िंदगी पे क़ुर्बां

    उस अहद-ए-आफ़यत में इक बार फिर सुला दे

    मेरे अहद-ए-माज़ी फिर इक झलक दिखा दे

    बाग़-ए-जहाँ में रक्खा उन शादियों ने मुझ को

    राहत की लोरियाँ दीं आज़ादियों ने मुझ को

    बे-फ़िक्र ज़िंदगी थी ख़ुद होश मुझ को कब था

    इक कैफ़-ए-बे-ख़ुदी था मस्त-ए-मय-ए-तरब था

    उम्र-ए-रफ़्ता तू ने की मुझ से बे-वफाई

    जा पलट के दम भर मैं हूँ तिरा फ़िदाई

    दिल में शरारतें थीं कैसे ग़ज़ब की पिन्हाँ

    रग रग में बिजलियाँ थीं जोश-ए-तरब की पिन्हाँ

    हूँ अपनी ज़िंदगी का अंदाज़ा करने वाला

    जन्नत से ला के तू ने दोज़ख़ में मुझ को डाला

    स्रोत :
    • पुस्तक : Auraq-e-Aziz (पृष्ठ 42)
    • रचनाकार : Aziz Lakhnavi
    • प्रकाशन : Nusrat Publisher Aminabad Lucknow

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