Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

वो मर चुका है

सरमद सहबाई

वो मर चुका है

सरमद सहबाई

MORE BYसरमद सहबाई

    वो जिस के रस्ते पे बाल खोले

    नगर की सब लड़कियाँ खड़ी हैं

    वो मर चुका है

    वो मर चुका है

    कि जिस की ख़ातिर नगर की नौ उम्र लड़कियों ने

    बदन की ख़ुश-रंग ज़ीनतों को

    छुपा के रक्खा

    जिन्हों ने बेताब हिद्दतों को

    बदन की फट पड़ती शिद्दतों को

    सँभाले रक्खा

    जिन्हों ने आँखों के नम को शर्म-ओ-हया के आँचल की ओट ढाँपा

    वो मर चुका है

    वो जिस के रस्ते पे बाल खोले

    नगर की सब लड़कियाँ खड़ी हैं

    नगर की सब लड़कियाँ पुकारें

    बदल के वो भेस बादलों का

    हमारे ताज़ा कुँवारे जिस्मों की सोंधी मिट्टी से के लिपटे

    हमारा ख़ून बूँद बूँद

    गूँधे

    हम इस के साए से हामिला हूँ

    नगर की सब लड़कियाँ पुकारें

    कभी वो गूँजे गजर की सूरत

    हमारे सुनसान गुम्बदों में

    कभी वो भड़के अलाव बन कर

    हमारे ता यक ताक़चों में

    कभी वो जिस्मों की बंसियों में

    शिगाफ़ डाले

    लज़ीज़ दर्दीला गीत बन कर

    लबों से निकले

    कभी वो चमके सितारा बन कर

    हमारी कोखों में फूल महकें

    हमारी कोखों में फल जनम ले

    नगर की सब लड़कियाँ पुकारें

    नगर की सब लड़कियाँ पुकारें

    हमारी ख़्वाहिश वो दूध बन कर

    हमारी ज़रख़ेज़ छातियों की नमी में उतरे

    हमारी ख़्वाहिश हमारे बच्चे

    उसी के हाथों में आँख खोलीं

    हम उस के साए से हामिला हों

    नगर की सब लड़कियाँ पुकारें

    कभी वो पिछले पहर दरीचों पे खुलते महताब से ये कहतीं

    कहाँ है वो शहसवार जिस को

    ब-वक़्त रुख़्सत गले में हम ने

    सफ़ेद फूलों के हार डाले

    वो फूल कब सुर्ख़ फूल बन कर

    हमारी वीरान ख़्वाब-गाहों की सेज होंगे

    सिन्दूर कब कब मैं मैं गा

    ये फूल कब सुर्ख़ फूल होंगे

    कभी वो तन्हा बरामदे के सुतून से लिपटी

    लचकती बेलों के ज़र्द पत्तों से पूछतीं ये

    बहार की रुत कहाँ खड़ी है

    ये फूल अब किस से खिलेंगे

    बहार की रुत अभी कहाँ है

    हर इक मुसाफ़िर को रोकतीं वो

    बताओ वो शहसवार अब कब

    नगर को लौटेगा पूछतीं वो

    कुँवारे लम्हों का भेद कुँवारा

    कुँवारे गीतों की लय कुँवारी

    कुँवारे जिस्मों की कच्ची कलियों का नम कुँवारा

    नगर की तमाम नौ-उम्र लड़कियों ने

    कली कली को सँभाले रक्खा

    कि वो अगर आए ओस बन कर

    तो क़तरा क़तरा कली में उतरे

    कली को खोले

    मगर वो लफ़्ज़ों के दाएरों के सफ़र से गुज़रा

    पुरानी सुनसान सीढ़ियों के भँवर से निकला

    जो घर से बाहर हज़ार अनजाने रास्तों पर बिखर गया था

    कि बुझते सूरज का खोज पाए

    हर एक साए का भेद खोले

    जो अपनी आँखों में ख़्वाहिशों का अलाव ले कर

    अँधेरे जंगल में चल रहा था

    जो पूछता था

    ज्ञान किया है

    जो पूछता था नजात किस में है

    अस्ल क्या है

    वो मर चुका है

    वो जिस के रस्ते पे बाल खोले

    नगर की सब लड़कियाँ खड़ी हैं

    स्रोत:

    Jalta Hai Badan (Pg. 56)

    • लेखक: Zahid Hasan
      • संस्करण: 2002
      • प्रकाशक: Apnaidara, Lahore
      • प्रकाशन वर्ष: 2002

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

    GET YOUR PASS
    बोलिए