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कश्मीर

MORE BYचकबस्त बृज नारायण

    पानी में है चश्मों के असर आब-ए-बक़ा का

    हर नख़्ल पे 'आलम ख़िज़र-ए-सब्ज़-क़बा का

    जो फूल है गुलशन में वो है नूर ख़ुदा का

    साए में शजर के है असर ज़िल्ल-ए-हुमा का

    मब्दा करम-ए-'आम की हर जू-ए-रवाँ है

    सर-चश्मा-ए-फ़ैज़-ए-चमन-आरा-ए-जहाँ है

    वो मौज-ए-हवा का हरकत अब्र को देना

    चश्मों से पहाड़ों के वो उड़ता हुआ फेना

    गाते हुए मल्लाहों का वो कश्तियाँ खेना

    दिल का वो सर-ए-शाम इधर करवटें लेना

    वो 'अक्स चराग़ों का झलकता नज़र आना

    पानी का सितारा भी चमकता नज़र आना

    हर लाला-ए-कुहसार है शक्ल-ए-गुल-ए-राहत

    दाग़ उस के हैं या ख़ाल-ए-रुख़-ए-हूर-ए-मसर्रत

    क्या सब्ज़ा-ए-ख़ुश-रंग है सरमाया-ए-'इशरत

    दिल के लिए ठंडक है जिगर के लिए फ़रहत

    ऐसा नहीं क़ुदरत ने किया फ़र्श कहीं पर

    इस रंग का सब्ज़ा ही नहीं रू-ए-ज़मीं पर

    वो सुब्ह को कोहसार के फूलों का महकना

    वो झाड़ियों की आड़ में चिड़ियों का चहकना

    गर्दूं पे शफ़क़ कोह पे लाले का लहकना

    मस्तों की तरह अब्र के टुकड़ों का बहकना

    हर फूल की जुम्बिश से 'अयाँ नाज़ परी का

    चलना वो दबे पाँव नसीम-ए-सहरी का

    वो ताइर-ए-कोहसार लब-ए-चश्मा-ए-कोहसार

    वो सर्द हवा वो करम-ए-अब्र-ए-गुहर-बार

    वो मेवा-ए-ख़ुश-रंग वो सरसब्ज़ चमन-ज़ार

    इक आन में सेहत हो जो बरसों का हो बीमार

    ये बाग़-ए-वतन रूकश-ए-गुलज़ार-ए-जिनाँ है

    सरमाया-ए-नाज़-ए-चमन-आरा-ए-जहाँ है

    है ख़ित्त-ए-सर-सब्ज़ में इक नूर का 'आलम

    हर शाख़-ओ-शजर पर शजर-ए-तूर का 'आलम

    परवीन है ये ख़ोशा-ए-अंगूर का 'आलम

    हर ख़ार पे भी है मिज़ा-ए-हूर का 'आलम

    निकले सदा ऐसी मुग़न्नी के गुलू से

    आती है जो आवाज़-ए-तरन्नुम लब-ए-जू से

    मेवों से गिराँ-बार वो अश्जार के डाले

    बिखरे हुए वो दामन-ए-कोहसार पे लाले

    उड़ते हुए बाला-ए-हवा बर्फ़ के झाले

    देखे जो कोई दूर से हैं रुई के गाले

    वो अब्र के लकों का तमाशा शजरों में

    झरनों की सदाएँ वो पहाड़ों के दरों में

    छूटे हुए उस बाग़ को गुज़रा है ज़माना

    ताज़ा है मगर उस की मोहब्बत का फ़साना

    'आलम ने शरफ़ जिन की बुज़ुर्गी का है माना

    उठते थे उसी ख़ाक से वो 'आलिम-ओ-दाना

    तन जिन का है पैवंद अब उस पाक ज़मीं का

    रग रग में हमारी है रवाँ ख़ूँ उन्हीं का

    हाँ मैं भी हूँ बुलबुल उसी शादाब चमन का

    है चश्मा-ए-फ़िर्दोस ये 'आलम है दहन का

    किस तरह सरसब्ज़ हो गुलज़ार सुख़न का

    है रंग तबी'अत में चमन-ज़ार-ए-वतन का

    ताज़े हैं मज़ामीं भी तबी'अत भी हरी है

    हाँ गुलशन-ए-क़ौमी की हवा सर में भरी है

    स्रोत :
    • Tasvir-e-Manazil (Jild Avval)

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