नज़्र-ए-टैगोर
मिरी कला मेरी शाइ'री मेरे फ़न का उस को सलाम पहुँचे
कि जिस ने मशरिक़ की अज़्मतों को अता किए ज़िंदगी के पैकर
जो सतवतें ख़्वाब हो चुकी थीं जो रिफ़अतें पस्त हो चुकी थीं
उन्हें जगा कर उन्हें सजा कर बना दिया आसमाँ का हम-सर
भटक रही थी वतन की हस्ती ग़ुलाम रूहों के कारवाँ में
शुऊ'र-ए-आज़ादी उस को दे कर बना दिया अस्र-ए-नौ का रहबर
मिरी नवाओं में शोख़ तर्ज़-ए-सुख़न का उस को सलाम पहोंचे
कि जिस ने मशरिक़ की सरज़मीं को नए जहाँ का उफ़ुक़ बनाया
निज़ाम-ए-तहसील-ए-इल्म बदला नया तसव्वुर अदब को बख़्शा
ललित-कलाओं को शांति के हसीन उन्वान से सजाया
शफ़क़ की मेहंदी धनक के कंगन चुराए और कहकशाँ की अफ़्शाँ
बड़े जतन से हसीना-ए-शाइरी को जिस ने दुल्हन बनाया
'सरोश' मेरे शुऊ'र के बाँकपन का उस को सलाम पहुँचे
शराब-ए-मशरिक़ के जाम छलकाए जिस ने मग़रिब के मय-कदों में
मुसव्विर-ए-तलअ'त-ए-निगाराँ मुग़न्नी-ए-शौकत-ए-बहाराँ
हैं मौजज़न काएनात के दिल की धड़कनें जिस के चहचहों में
सुकूत-ए-शब रक़्स-ए-माह-ओ-अंजुम फ़ज़ा के शाने सबा की ज़ुल्फ़ें
निगार-ए-फ़ितरत की हर अदा का जमाल है जिस के ज़मज़मों में
मैं रूह-ए-टैगोर तेरे दर पर अक़ीदत-ए-सर झुका रहा हूँ
तिरे तसव्वुर में नग़्मा-ज़न हूँ मैं तेरी ही लय में गा रहा हूँ
तिरे तख़य्युल तिरे तफ़क्कुर तिरे तदब्बुर के फूल चुन कर
मैं अपने फ़न अपने दौर अपने वतन की महफ़िल सजा रहा हूँ
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