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जहाँ 'रेहाना' रहती थी

अख़्तर शीरानी

जहाँ 'रेहाना' रहती थी

अख़्तर शीरानी

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    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    वो इस वादी की शहज़ादी थी और शाहाना रहती थी

    कँवल का फूल थी संसार से बेगाना रहती थी

    नज़र से दूर मिस्ल-ए-निकहत-ए-मस्ताना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ रेहाना रहती थी

    इन्ही सहराओं में वो अपने गल्ले को चराती थी

    इन्हीं चश्मों पे वो हर रोज़ मुँह धोने को आती थी

    इन्ही टीलों के दामन में वो आज़ादाना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    खजूरों के तले वो जो खंडर से झिलमिलाते हैं

    ये सब 'रेहाना' के मासूम अफ़्साने सुनाते हैं

    वो इन खंडरों में इक दिन सूरत-ए-अफ़्साना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    मिरे हमदम ये नख़लिस्तान इक दिन उस का मस्कन था

    इसी के ख़र्रमी-ए-आग़ोश में उस का नशेमन था

    इसी शादाब वादी में वो बे-बाकाना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    ये फूलों की हसीं आबादियाँ काशाना थीं उस का

    वो इक बुत थी ये सारी वादियाँ बुत-ख़ाना थीं उस का

    वो इस फ़िरदौस-ए-वज्द-ओ-रक़्स में मस्ताना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    तबाही की हवा इस ख़ाक-ए-रंगीं तक आई थी

    ये वो ख़ित्ता था जिस में नौ-बहारों की ख़ुदाई थी

    वो इस ख़ित्ते में मिस्ल-ए-सब्ज़ा-ए-बेगाना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    इसी वीराना में इक दिन बहिश्तें लहलहाती थीं

    घटाएँ घिर के आती थीं हवाएँ मुस्कुराती थीं

    कि वो बन कर बहार-ए-जन्नत-ए-वीराना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    ये वीराना गुज़र जिस में नहीं है कारवानों का

    जहाँ मिलता नहीं नाम-ओ-निशाँ तक सारबानों का

    इसी वीराने में इक दिन मिरी 'रेहाना' रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    यहीं आबाद थी इक दिन मिरे अफ़्कार की मलका

    मिरे जज़्बात की देवी मिरे अशआर की मलका

    वो मलका जो ब-रंग-ए-अज़्मत-ए-शाहाना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ रेहाना रहती थी

    सबा शाख़ों में नख़लिस्ताँ की जिस दम सरसराती है

    मुझे हर लहर से 'रेहाना' की आवाज़ आती है

    यहीं 'रेहाना' रहती है यहीं 'रेहाना' रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    फ़ज़ाएँ गूँजती हैं अब भी उन वहशी तरानों से

    सुनो आवाज़ सी आती है उन ख़ाकी चटानों से

    कि जिन में वो ब-रंग-ए-नग़्म-ए-बेगाना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    मिरे हमदम जुनून-ए-शौक़ का इज़हार करने दे

    मुझे उस दश्त की इक इक कली से प्यार करने दे

    जहाँ इक दिन वो मिस्ल-ए-गुंचा-ए-मस्ताना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    ब-रब्ब-ए-काबा उस की याद में उम्रें गँवा दूँगा

    मैं उस वादी के ज़र्रे ज़र्रे पर सज्दे बिछा दूँगा

    जहाँ वो जान-ए-काबा अज़्मत-ए-बुत-ख़ाना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    वो इस टीले पर अक्सर आशिक़ाना गीत गाती थी

    पुराने सूरमाओं के फ़साने गुनगुनाती थी

    यहीं पर मुंतज़िर मेरी वो बेताबाना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    खजूरों के हसीं साए ज़मीं पर लहलहाते थे

    सितारे जगमगाते थे शगूफ़े खिलखिलाते थे

    फ़ज़ाएँ मुंतशिर इक निकहत-ए-मस्ताना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    यहीं बस्ती थी हमदम मिरे रूमान की बस्ती

    मिरे अफ़्सानों की दुनिया मिरे विज्दान की बस्ती

    यहीं 'रेहाना' बस्ती थी यहीं 'रेहाना' बस्ती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    शमीम-ए-ज़ुल्फ़ से उस की महक जाती थी कुल वादी

    निगाह-ए-मस्त से उस की बहक जाती थी कुल वादी

    हवाएँ पर-फ़िशाँ रूह-ए-मय-ओ-मय-ख़ाना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    वो गेसू-ए-परेशाँ या घटाएँ रक़्स करती थीं

    फ़ज़ाएँ वज्द करती थीं हवाएँ रक़्स करती थीं

    वो इस फ़िरदौस-ए-वज्द-ओ-रक़्स में मस्ताना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    गुदाज़-ए-इश्क़ से लबरेज़ था क़ल्ब-ए-हज़ीं उस का

    मगर आईना-दार-ए-शर्म था रू-ए-हसीं इस का

    ख़मोशी में छुपाए नग़्मा-ए-मस्ताना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    उसे फूलों ने मेरी याद में बेताब देखा है

    सितारों की नज़र ने रात भर बे-ख़्वाब देखा है

    वो शम-ए-हुस्न थी पर सूरत-ए-परवाना रहती थी

    यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    यहीं हम-रंग-ए-गुल-हा-ए-हसीं रहती थी 'रेहाना'

    मिसाल-ए-हूर-ए-फ़िरदौस-ए-बरीं रहती थी 'रेहाना'

    यहीं 'रेहाना' रहती थी यहीं 'रेहाना' रहती थी

    यहीं वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    पयाम दर्द-ए-दिल 'अख़्तर' दिए जाता हूँ वादी को

    सलाम-ए-रुख़्सत-ए-ग़मगीं किए जाता हूँ वादी को

    सलाम वादी-ए-वीराँ जहाँ 'रेहाना' रहती थी

    स्रोत:

    kulliyat-e-akhtar shirani (Pg. 148)

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