गणतंत्र दिवस पर ग़ज़ल
शायरी में वतन-परस्ती के जज़्बात का इज़हार बड़े मुख़्तलिफ़ ढंग से हुआ है। हम अपनी आम ज़िंदगी में वतन और इस की मोहब्बत के हवाले से जो जज़्बात रखते हैं वो भी और कुछ ऐसे गोशे भी जिन पर हमारी नज़र नहीं ठहरती इस शायरी का मौज़ू हैं। ये अशआर पढ़िए और इस जज़बे की रंगारंग दुनिया की सैर कीजिए।