हास्य/व्यंग्य: शौकत थानवी की 5 चुनिंदा तहरीरें
क्रिकेट मैच
बा’ज़ दोस्तों ने स्यालकोट चलने को कहा तो हम फ़ौरन तैयार हो गए मगर जब ये मालूम हुआ कि इस सफ़र का मक़सद क्रिकेट मैच है तो यकायक साँप सूंघ गया। सफ़र का तमाम वलवला एक बीती हुई याद की नज़र हो कर रह गया। अब लाख लाख सब पूछते हैं कि चक्कर आगया है। फ़ालिज गिरा है। क़ल्ब
शौकत थानवी
ससुराली रिश्तेदार
मुसीबत ये है कि रेडियो सेट ससुराल में भी है और वहाँ की हर दीवार गोश दारद, मगर बुज़ुर्गों का ये मक़ूला उस वक़्त रह-रह कर उकसा रहा है कि बेटा फांसी के तख़्ता पर भी सच बोलना, ख़्वाह वो फांसी ज़िंदगी भर की क्यों न हो, मौज़ू जिस क़दर नाज़ुक है उसी क़दर अख़लाक़ी जुर्रत
शौकत थानवी
वकील
हिन्दुस्तान में जैसी अच्छी पैदावार वकीलों की हो रही है अगर उतना ही ग़ल्ला पैदा होता तो कोई भी फ़ाक़े न करता। मगर मुसीबत तो ये है कि ग़ल्ला पैदा होता है कम और वकीलों की फ़सल होती है अच्छी। नतीजा यही होता है कि वही सब ग़ल्ला खा जाते हैं और बाक़ी सब के लिए
शौकत थानवी
मैं एक शायर हूँ
साहब में एक शायर हूँ छपा हुआ दीवान तो ख़ैर कोई नहीं है। मगर कलाम ख़ुदा के फ़ज़ल से इतना मौजूद है कि अगर मैं मुरत्तब करने बैठूँ तो एक छोड़ चार-पाँच दीवान मुरत्तब कर ही सकता हूँ। अपनी शायरी के मुताल्लिक़ अब मैं ख़ुद क्या अर्ज़ करूँ अलबत्ता मुशायरों में जानेवाले
शौकत थानवी
शादी हिमाक़त है
शादी के बाद से इस बात पर ग़ौर करने की कुछ आदत सी हो गई है कि शादी करना कोई दानिशमंदाना फे़’ल है या हिमाक़त, यानी अगर ये दानिशमंदी है तो फिर बा’ज़ औक़ात अपने बेवक़ूफ़ होने का बेसाख़्ता एहसास क्यों होने लगता है और अगर ये हिमाक़त है तो इस हिमाक़त में दुनिया क्यों