मंटो बनाम सत्यार्थी ( दो कहानीकारों के बीच तकरार )
मंटो और सत्यार्थी, दोनों
उर्दू कहानियाँ पढ़ने वालों के बीच घरेलू नाम हैं। लेकिन क्या होता है जब दो जाने-माने लेखक एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लिखते हैं? भले ही ये कहानियाँ सिर्फ़ व्यक्तिगत रूप से दूसरे पर तोहमत लगाती नज़र आती हों, बड़े पैमाने पर ये कहानियाँ दोनों लेखकों के आदर्शों में अंतर भी दिखाती हैं। मंटो और सत्यार्थी का एक-दूसरे के बारे में क्या कहना था, ये जानने के लिए ये दो कहानियाँ पढ़ें।
तरक़्क़ी पसंद
तंज़-ओ-मिज़ाह के अंदाज़ में लिखी गई यह कहानी तरक्क़ी-पसंद अफ़साना-निगारों पर भी चोट करता है। जोगिंदर सिंह एक तरक्क़ी-पसंद कहानी-कार है जिसके यहाँ हरेंद्र सिंह आकर डेरा डाल देता है और निरंतर अपनी कहानियाँ सुना कर बोर करता रहता है। एक दिन अचानक जोगिंदर सिंह को एहसास होता है कि वो अपनी बीवी की हक़-तल्फ़ी कर रहा है। इसी ख़्याल से वो हरेंद्र से बाहर जाने का बहाना करके बीवी से रात बारह बजे आने का वादा करता है। लेकिन जब रात में जोगिंदर अपने घर के दरवाज़े पर दस्तक देता है तो उसकी बीवी के बजाय हरेंद्र दरवाज़ा खोलता है और कहता है जल्दी आ गए, आओ, अभी एक कहानी मुकम्मल की है, इसे सुनो।
सआदत हसन मंटो
नए देवता
तरक्की-पंसद अदीबों में से एक नफ़ासत हसन ने अपनी यहाँ दावत की हुई है। दावत में उसके बहुत से साथी आए हुए हैं। नफ़ासत हसन तरक़्क़ी-पसंद अदीब है, लेकिन जिस मह्कमे में वह नौकरी करता है उसके ख़्यालों के बिल्कुल उलट है। वैसे उसी नौकरी से वह अपने यहाँ इस दावत का इंतिज़ाम कर पाया है। खाने के दौरान अदब पर बातचीत चल निकलती है। एक दूसरे अदीब अंग्रेज़ी लेखक समरसेट माम को अपना पसंदीदा लेखक बताते हैं। मेज़बान भी समरसेट को लेकर अपनी दिवानगी ज़ाहिर करता है। इसको लेकर उन दोनों के बीच खासी नोक-झोंक होती है और इसी नोक-झोंक में समरसेट माम उनका नया देवता बनकर सामने आता है।