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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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आदिल रज़ा मंसूरी

1978 | जयपुर, भारत

प्रसिद्ध समकालीन शायर, साहित्यिक पत्रिका ‘इस्तिफ्सार’ के सम्पादक

प्रसिद्ध समकालीन शायर, साहित्यिक पत्रिका ‘इस्तिफ्सार’ के सम्पादक

आदिल रज़ा मंसूरी

ग़ज़ल 8

नज़्म 11

अशआर 3

मिरी ख़ामोशियों की झील में फिर

किसी आवाज़ का पत्थर गिरा है

सफ़र के ब'अद भी मुझ को सफ़र में रहना है

नज़र से गिरना भी गोया ख़बर में रहना है

वहाँ शायद कोई बैठा हुआ है

अभी खिड़की में इक जलता दिया है

 

पुस्तकें 18

 

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