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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अख़्तर अली अख़्तर

1894 - 1950 | हैदराबाद, भारत

हैदराबाद के प्रसिद्ध शायर,जोश के समकालीन, दोनों के मध्य समकालिक नोक झोंक भी रही. अपनी लम्बी नज़्म ‘कौल फैसल’ के लिए प्रसिद्ध

हैदराबाद के प्रसिद्ध शायर,जोश के समकालीन, दोनों के मध्य समकालिक नोक झोंक भी रही. अपनी लम्बी नज़्म ‘कौल फैसल’ के लिए प्रसिद्ध

अख़्तर अली अख़्तर के शेर

फ़रेब-ए-जल्वा कहाँ तक ब-रू-ए-कार रहे

नक़ाब उठाओ कि कुछ दिन ज़रा बहार रहे

मुझी को पर्दा-ए-हस्ती में दे रहा है फ़रेब

वो हुस्न जिस को किया जल्वा-आफ़रीं मैं ने

चटक में ग़ुंचे की वो सौत-ए-जाँ-फ़ज़ा तो नहीं

सुनी है पहले भी आवाज़ ये कहीं मैं ने

तुम ने हर ज़र्रे में बरपा कर दिया तूफ़ान-ए-शौक़

इक तबस्सुम इस क़दर जल्वों की तुग़्यानी के साथ

गुफ़्तुगू-ए-सूरत-ओ-म'अनी है उनवान-ए-हयात

खेलते हैं वो मिरी फ़ितरत की हैरानी के साथ

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