फ़रहत शहज़ाद
ग़ज़ल 20
अशआर 14
परस्तिश की है मेरी धड़कनों ने
तुझे मैं ने फ़क़त चाहा नहीं है
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बात अपनी अना की है वर्ना
यूँ तो दो हाथ पर किनारा है
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मैं शायद तेरे दुख में मर गया हूँ
कि अब सीने में कुछ दुखता नहीं है
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हम से तंहाई के मारे नहीं देखे जाते
बिन तिरे चाँद सितारे नहीं देखे जाते
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