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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Jayant Parmar's Photo'

जयंत परमार

1955 | अहमदाबाद, भारत

साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित, उर्दू में दलित विशर्ष दाखिल करने वाले पहले शायर

साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित, उर्दू में दलित विशर्ष दाखिल करने वाले पहले शायर

जयंत परमार के शेर

बिस्तर पे लेटे लेटे मिरी आँख लग गई

ये कौन मेरे कमरे की बत्ती बुझा गया

हर एक शाख़ के हाथों में फूल महकेंगे

ख़िज़ाँ का पेड़ भी कपड़े बदलना चाहता है

दिल को दुखाती है फिर भी क्यूँ अच्छी लगती है

यादों की ये शाम सुहानी दिल में क़ैद हुई

लम्स की वो रौशनी भी बुझ गई

जिस्म के अंदर अंधेरा और है

जुगनू था तारा था क्या था

दरवाज़े पर कौन खड़ा था

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