मोहम्मद रफ़ी सौदा का परिचय
उपनाम : 'सौदा'
मूल नाम : मिर्ज़ा मोहम्मद रफ़ी सौदा
जन्म :दिल्ली
निधन : 26 Jun 1781 | लखनऊ, उत्तर प्रदेश
संबंधी : मिर्ज़ा अज़ीम बेग 'अज़ीम' (शिष्य), क़ाएम चाँदपुरी (गुरु)
'सौदा' जो तिरा हाल है इतना तो नहीं वो
क्या जानिए तू ने उसे किस आन में देखा
व्याख्या
सौदा के इस शे’र में लफ़्ज़ “वो” और “उसे” का इशारा महबूब की तरफ़ है। शे’र के शाब्दिक मायनी तो ये हैं कि सौदा जो तेरा हाल है उतना वो यानी तेरे महबूब का नहीं है। समझ में नहीं आता कि तूने उसे किस वक़्त और किस कैफ़ियत में देखा है?
लेकिन जब दूर के मानी यानी भावार्थ पर ग़ौर करते हैं तो ख़याल की एक स्थिति उभरती है। उस स्थिति के दो पात्र हैं एक सौदा दूसरा कलाम करने वाला यानी सौदा से बात करने वाला। ये सौदा का कोई दोस्त भी हो सकता है या ख़ुद सौदा भी।
बहरहाल जो भी है वो सौदा से ये कहता है कि ऐ सौदा तूने जिस माशूक़ के ग़म में अपना ये हाल बना लिया है यानी अपनी हालत बिगाड़ ली है, मैंने उसे देखा है और वो हरगिज़ इतना ख़ूबसूरत नहीं कि उसके लिए कोई अपनी जान हलकान करे। मालूम नहीं तुमने उसे किस आन में देखा है कि वो तेरे दिल को भा गया। आन के दो मानी हैं, एक है समय और दूसरा माशूक़ाना छवि, शान-ओ-शौकत, रंग-ढंग। और शे’र में आन को दूसरे मायनी यानी माशूक़ाना छवि, रंग-ढंग में लिया गया है। पता नहीं ऐ सौदा तूने उसे यानी अपने महबूब को किस माशूक़ाना छवि, रंग-ढंग में देखा है कि उसके इश्क़ में जान हलकान कर बैठे हो। मैंने उसे देखा वो इतना भी ख़ूबसूरत नहीं कि कोई उसके इश्क़ में अपने आपको तबाह ओ बर्बाद कर ले।
शफ़क़ सुपुरी
व्याख्या
सौदा के इस शे’र में लफ़्ज़ “वो” और “उसे” का इशारा महबूब की तरफ़ है। शे’र के शाब्दिक मायनी तो ये हैं कि सौदा जो तेरा हाल है उतना वो यानी तेरे महबूब का नहीं है। समझ में नहीं आता कि तूने उसे किस वक़्त और किस कैफ़ियत में देखा है?
लेकिन जब दूर के मानी यानी भावार्थ पर ग़ौर करते हैं तो ख़याल की एक स्थिति उभरती है। उस स्थिति के दो पात्र हैं एक सौदा दूसरा कलाम करने वाला यानी सौदा से बात करने वाला। ये सौदा का कोई दोस्त भी हो सकता है या ख़ुद सौदा भी।
बहरहाल जो भी है वो सौदा से ये कहता है कि ऐ सौदा तूने जिस माशूक़ के ग़म में अपना ये हाल बना लिया है यानी अपनी हालत बिगाड़ ली है, मैंने उसे देखा है और वो हरगिज़ इतना ख़ूबसूरत नहीं कि उसके लिए कोई अपनी जान हलकान करे। मालूम नहीं तुमने उसे किस आन में देखा है कि वो तेरे दिल को भा गया। आन के दो मानी हैं, एक है समय और दूसरा माशूक़ाना छवि, शान-ओ-शौकत, रंग-ढंग। और शे’र में आन को दूसरे मायनी यानी माशूक़ाना छवि, रंग-ढंग में लिया गया है। पता नहीं ऐ सौदा तूने उसे यानी अपने महबूब को किस माशूक़ाना छवि, रंग-ढंग में देखा है कि उसके इश्क़ में जान हलकान कर बैठे हो। मैंने उसे देखा वो इतना भी ख़ूबसूरत नहीं कि कोई उसके इश्क़ में अपने आपको तबाह ओ बर्बाद कर ले।
शफ़क़ सुपुरी