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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Parvez Shahidi's Photo'

परवेज़ शाहिदी

1910 - 1968 | कोलकाता, भारत

परवेज़ शाहिदी के शेर

जाने कह गए क्या आप मुस्कुराने में

है दिल को नाज़ कि जान गई फ़साने में

मिरी ज़िंदगी की ज़ीनत हुई आफ़त-ओ-बला से

मैं वो ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म हूँ जो सँवर गई हवा से

अभी से सुब्ह-ए-गुलशन रक़्स-फ़रमा है निगाहों में

अभी पूरी नक़ाब उल्टी नहीं है शाम-ए-सहरा ने

याद हैं आप के तोड़े हुए पैमाँ हम को

कीजिए और शर्मिंदा-ए-एहसाँ हम को

गीत हरियाली के गाएँगे सिसकते हुए खेत

मेहनत अब ग़ारत-ए-जागीर तक पहुँची है

ये ताज के साए में ज़र-ओ-सीम के ख़िर्मन

क्यूँ आतिश-ए-कश्कोल-ए-गदा से नहीं डरते

गुज़रा है कौन फूल खिलाता ख़िराम से

'शादाब' आज राहगुज़र पा रहा हूँ मैं

सख़्त-जाँ वो हूँ कि मक़्तल से सर-अफ़राज़ आया

कितनी तलवारों को देता हुआ आवाज़ आया

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