क़ाएम चाँदपुरी
ग़ज़ल 87
अशआर 90
क़िस्मत तो देख टूटी है जा कर कहाँ कमंद
कुछ दूर अपने हाथ से जब बाम रह गया
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दुनिया में हम रहे तो कई दिन प इस तरह
दुश्मन के घर में जैसे कोई मेहमाँ रहे
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दिल पा के उस की ज़ुल्फ़ में आराम रह गया
दरवेश जिस जगह कि हुई शाम रह गया
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