राजेन्द्र कृष्ण
ग़ज़ल 15
अशआर 9
न झटको ज़ुल्फ़ से पानी ये मोती टूट जाएँगे
तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा मगर दिल टूट जाएँगे
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न चारागर की ज़रूरत न कुछ दवा की है
दुआ को हाथ उठाओ कि ग़म की रात कटे
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लोग रो रो के भी इस दुनिया में जी लेते हैं
एक हम हैं कि हँसे भी तो गुज़ारा न हुआ
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इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ
ग़ैर तो ग़ैर हैं अपनों का सहारा न हुआ
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इक मोहब्बत के सिवा और न कुछ माँगा था
क्या करें ये भी ज़माने को गवारा न हुआ
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फ़िल्मी गीत 1
चित्र शायरी 1
किसी की याद में दुनिया को हैं भुलाए हुए ज़माना गुज़रा है अपना ख़याल आए हुए बड़ी अजीब ख़ुशी है ग़म-ए-मोहब्बत भी हँसी लबों पे मगर दिल पे चोट खाए हुए हज़ार पर्दे हों पहरे हों या हों दीवारें रहेंगे मेरी नज़र में तो वो समाए हुए किसी के हुस्न की बस इक किरन ही काफ़ी है ये लोग क्यूँ मिरे आगे हैं शम्अ' लाए हुए
वीडियो 17
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