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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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Razi Akhtar Shauq's Photo'

रज़ी अख़्तर शौक़

1933 - 1999 | कराची, पाकिस्तान

रज़ी अख़्तर शौक़ के शेर

आप ही आप दिए बुझते चले जाते हैं

और आसेब दिखाई भी नहीं देता है

मुझ को पाना है तो फिर मुझ में उतर कर देखो

यूँ किनारे से समुंदर नहीं देखा जाता

हम रूह-ए-सफ़र हैं हमें नामों से पहचान

कल और किसी नाम से जाएँगे हम लोग

दो बादल आपस में मिले थे फिर ऐसी बरसात हुई

जिस्म ने जिस्म से सरगोशी की रूह की रूह से बात हुई

हम इतने परेशाँ थे कि हाल-ए-दिल-ए-सोज़ाँ

उन को भी सुनाया कि जो ग़म-ख़्वार नहीं थे

अब कैसे चराग़ क्या चराग़ाँ

जब सारा वजूद जल रहा है

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