तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल 38
नज़्म 8
अशआर 23
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे
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तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
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ये एक बात समझने में रात हो गई है
मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है
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अपनी मस्ती में बहता दरिया हूँ
मैं किनारा भी हूँ भँवर भी हूँ
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दास्ताँ हूँ मैं इक तवील मगर
तू जो सुन ले तो मुख़्तसर भी हूँ
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क़ितआ 1
चित्र शायरी 3
वीडियो 5
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