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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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तरकश प्रदीप

1984 | दिल्ली, भारत

तरकश प्रदीप

ग़ज़ल 11

अशआर 14

हम तो कहते हैं मोहब्बत में मज़ा है ही नहीं

आप कहते हैं तो फिर मान लिया जाता है

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और भटकेंगे तो कुछ और नया देखेंगे

हम तो आवारा परिंदे हैं हमारा क्या है

पागल वहशी तन्हा तन्हा उजड़ा उजड़ा दिखता हूँ

कितने आईने बदले हैं मैं वैसे का वैसा हूँ

बनाता हूँ मैं तसव्वुर में उस का चेहरा मगर

हर एक बार नई काएनात बनती है

आज फिर ख़ुद से ख़फ़ा हूँ तो यही करता हूँ

आज फिर ख़ुद से कोई बात नहीं करता मैं

चित्र शायरी 1

 
 

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